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प्र तद्वो॑चेद॒मृतं॒ नु वि॒द्वान् ग॑न्ध॒र्वो धाम॒ विभृ॑तं॒ गुहा॒ सत्। त्रीणि॑ प॒दानि॒ निहि॑ता॒ गुहा॑स्य॒ यस्तानि॒ वेद॒ स पि॒तुः पि॒ताऽस॑त् ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। तत्। वो॒चे॒त्। अ॒मृत॑म्। नु। वि॒द्वान्। ग॒न्ध॒र्वः। धाम॑। विभृ॑त॒मिति॒ विऽभृ॑तम्। गुहा॑। सत् ॥ त्रीणि॑। प॒दानि॑। निहि॒तेति॒ निऽहि॑ता। गुहा॑। अ॒स्य॒। यः। तानि॑। वेद॑। सः। पि॒तुः। पि॒ता। अ॒स॒त् ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:32» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (गन्धर्वः) वेदवाणी को धारण करनेवाला (विद्वान्) पण्डित (गुहा) बुद्धि में (बिभृतम्) विशेष धारण किये (अमृतम्) नाशरहित (धाम) मुक्ति के स्थान (तत्) उस (सत्) नित्य चेतन ब्रह्म का (नु) शीघ्र (प्र, वोचेत्) गुण-कर्म-स्वभावों के सहित उपदेश करे और जो (अस्य) इस अविनाशी ब्रह्म के (गुहा) ज्ञान में (निहिता) स्थित (पदानि) जानने योग्य (त्रीणि) तीन उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय वा भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान काल हैं, (तानि) उनको (वेद) जानता है, (सः) वह (पितुः) अपने पिता वा सर्वरक्षक ईश्वर का (पिता) ज्ञान देने वा आस्तिकत्व से रक्षक (असत्) होवे ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो विद्वान् लोग ईश्वर के मुक्तिसाधक बुद्धिस्थ स्वरूप का उपदेश करें, ठीक-ठीक पदार्थों के और ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव को जानें वे अवस्था में बड़े पितादिकों के भी रक्षा के योग्य होते हैं, ऐसा जानो ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्र) (तत्) चेतनं ब्रह्म (वोचेत्) गुणकर्मस्वभावत उपदिशेत् (अमृतम्) नाशरहितम् (नु) सद्यः (विद्वान्) पण्डितः (गन्धर्वः) यो गां वेदवाचं धरति सः (धाम) मुक्तिसुखस्य स्थानम् (बिभृतम्) विशेषेण धृतम् (गुहा) बुद्धौ (सत्) नित्यम् (त्रीणि) उत्पत्तिस्थितिप्रलयाः काला वा (पदानि) ज्ञातुमर्हाणि (निहिता) निहितानि (गुहा) बुद्धौ (अस्य) अविनाशिनः (यः) (तानि) (वेद) जानाति (सः) (पितुः) जनकस्येश्वरस्य वा (पिता) ज्ञानप्रदानेनास्तिकत्वेन वा रक्षकः (असत्) भवेत् ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यो गन्धर्वो विद्वान् गुहा विभृतममृतं धाम तत् सन्न प्रवोचेद् यान्यस्य गुहा निहिता पदानि त्रीणि सन्ति तानि च वेद स पितुः पिताऽसत् ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! य ईश्वरस्य मुक्तिसाधकं बुद्धिस्थं स्वरूपमुपदिशेयुर्यथार्थतया पदार्थानां परमात्मनश्च गुणकर्मस्वभावान् विजानीयुस्ते वयोवृद्धानां पितॄणामपि पितरो भवितुं योग्याः सन्तीति विजानीत ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे विद्वान लोक बुद्धीमध्ये धारण केलेल्या ईश्वराच्या यथायोग्य मुक्ती देणाऱ्या स्वरूपाचा उपदेश करतात व ईश्वराच्या आणि पदार्थांच्या गुण, कर्म, स्वभावाला जाणतात ते आपले पिता वगैरेचेही रक्षक असतात (व सर्वरक्षक ईश्वराचे ज्ञान देतात म्हणून अस्तिकतेचेही रक्षक असतात) हे जाणा.